गोरखपुर :इस्लामी तालीम पर सभी का बराबर हक़, कोई भी बन सकता है आलिम।/ रिपोर्ट नसीम रब्बानी
1 min readइस्लामी तालीम पर सभी का बराबर हक़, कोई भी बन सकता है आलिम।
शाहिदाबाद, हुसैनाबाद, घोसीपुर व तुर्कमानपुर में जलसा-ए-ग़ौसुलवरा।
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश।
ग़ौसे आज़म हज़रत शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी अलैहिर्रहमां की याद में शहर के तमाम मोहल्लों में जश्न-ए-ग़ौसुलवरा मनाया जा रहा है। इसी के तहत तुर्कमानपुर तिराहे पर रेयाज अहमद राईन के संयोजन में जलसा-ए-ग़ौसुलवरा का आयोजन हुआ। क़ुरआन-ए-पाक की तिलावत हाफ़िज़ अलकमा ने की। नात-ए-पाक अफ़रोज़ क़ादरी ने पेश की। संचालन हाफ़िज़ रहमत अली निज़ामी ने किया।
अध्यक्षता करते हुए मुफ़्ती अख़्तर हुसैन मन्नानी (मुफ़्ती-ए-शहर) व मुफ़्ती मोहम्मद अज़हर शम्सी (नायब काजी) ने कहा कि नबी-ए-पाक हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आख़िरी नबी हैं। आपके बाद अल्लाह ने नुबूवत का दरवाजा बंद फरमा दिया। अब कयामत तक कोई दूसरा नबी नहीं पैदा होगा। अगर कोई मुमकिन भी तसव्वुर करे तो दायरा-ए-इस्लाम से ख़ारिज है। नबी-ए-पाक ने खुद इरशाद फरमाया मैं आख़िरी नबी हूं, मेरे बाद कोई नबी नहीं पैदा होगा। इस बात की शहादत खुद क़ुरआन-ए-पाक में मौजूद है। साथ ही नबी-ए-पाक का इरशाद है कि मैं आख़िरी नबी हूं और तुम आखिरी उम्मत हो। अब अगर कोई नबी-ए-पाक का कलमा पढ़ने वाला अपने आपको नबी होने का दावा करे तो उससे बड़ा कोई कज़्ज़ाब, मक्कार और झूठा नहीं। मुसलमानों ने हर दौर में नुबूवत के झूठे दावेदारों को मुंह तोड़ जवाब दिया है और हमेशा देते रहेंगे।
शाहिदाबाद के जलसा-ए-ग़ौसुलवरा में संतकबीरनगर के काजी मुफ़्ती अख़्तर हुसैन क़ादरी अलीमी ने कहा कि नबी-ए-पाक हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कायनात की जान हैं। उन पर उतरने वाली किताब क़ुरआन-ए-पाक की पहली आयत इल्म हासिल करने से ताल्लुक रखती है। इल्म की अहमियत की वजह से मुसलमानों को कयादत मिली।मुस्लिम वैज्ञानिकों ने क़ुरआन व हदीस में गौर फिक्र करके नई-नई खोजें की। मदरसों में दीनी ही नहीं बल्कि एक जिम्मेदार, आत्मनिर्भर और मेहनतकश इंसान बनने की ट्रेनिंग दी जाती है। पूरी दुनिया का मुसलमान अल्लाह और उसके नबी-ए-पाक हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के फरमान पर अमल करता है और करता रहेगा।
हुसैनाबाद गोरखनाथ के जलसा-ए-ग़ौसुलवरा में मौलाना अनवर अहमद तनवीरी ने कहा कि मदरसों ने हिन्दुस्तान में सामाजिक क्रांति की। मदरसों ने जिस तरह से तालीम के जरिए से अमीर-गरीब का फर्क मिटाया वह दुनिया के किसी अन्य एजुकेशनल सिस्टम में खोजने से भी नहीं मिलता। हाफ़िज़ और मौलवी के नाम के बाद आज भी साहब लगाया जाता है। सभी आलिमों का सम्मान करते नहीं थकते।
घोसीपुर के जलसा-ए-ग़ौसुलवरा में मौलाना जमाले मुस्तफा ने कहा कि तमाम बुरे हालातों में भी मुसलमानों ने अपने शैक्षणिक संस्थानों को बचाए रखा। मदरसे सीना ताने खड़े रहे। आलिमों ने गांव-गांव टहल कर अभिभावकों से बच्चों को मांगा। उन्हें पढ़ाया ताकि वे इज़्ज़त की ज़िंदगी बसर कर सकें। यतीमों को गोद लिया। बेसहारा को ज़िंदगी दी। यही पैग़ाम दिया कि इस्लामी तालीम पर सभी का बराबर हक़ है। क़ुरआन व हदीस पढ़कर कोई भी आलिम बन सकता है।
अंत में सलातो-सलाम पढ़कर मुल्को मिल्लत के लिए दुआ की गई। जलसे में रेयाज अहमद, मेहताब आलम, सोहराब आलम, सेराज अहमद, मौलाना मो. असलम रज़वी, मनोव्वर अहमद, रमज़ान अली, हाफ़िज़ अज़ीम अहमद नूरी, कारी अफ़ज़ल बरकाती, कारी मो. मोहसिन रज़ा, कारी आबिद अली, कारी जाकिर हुसैन, कारी निसार अहमद, मौलाना तफज़्ज़ुल हुसैन रज़वी, मो. दारैन, अल्ताफ, मो. युनूस, नसीरुद्दीन आदि मौजूद रहे।