स्वास्थ्य मंत्री मुख्य दर्शक बनकर बैठे है। आखिर स्वास्थ्य व्यवस्था बिगड़ते क्यों नजर आ रहे हैं। पटना से मनोज सिंह के साथ सनोवर खान की रिपोर्ट
1 min readपटना का नामी-गिरामी सरकारी अस्पताल आईजीएमएस की सच्चाई।
स्वास्थ विभाग की खुलती पोल नजर दिखती नजर आ रही है।
स्वास्थ्य मंत्री मुख्य दर्शक बनकर बैठे है। आखिर स्वास्थ्य व्यवस्था बिगड़ते क्यों नजर आ रहे हैं।
पटना से मनोज सिंह के साथ सनोवर खान की रिपोर्ट
पटना:पटना का नामी-गिरामी सरकारी अस्पताल आईजीएमएस की सच्चाई।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय एवं बिहार सरकार की देखरेख में चलने वाला इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान अस्पताल पूरी व्यवस्था एवं लाव लश्कर के साथ सुसज्जित है, अनुभवी डॉक्टर एवं विशेषज्ञ की कोई कमी नहीं है, बिहार के कोने कोने से मरीज यहां इलाज कराने के लिए आते हैं। आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित लैब एवं मेडिकल की सारी सुविधा यहां उपलब्ध है।
इतना सब कुछ के बावजूद अस्पताल प्रबंधन मरीजों को समय पर इलाज कराने में विफल साबित हो रहा है, ऐसा ही मामला पिछले दिनों अस्पताल में देखने को मिला जहां मरीज के परिजन और अस्पताल के सुरक्षा गार्ड आपस में मारपीट करते देखे गए, अस्पताल के सुरक्षा गार्ड मरीजों से इस तरह व्यवहार करते हैं जैसे अपराधियों के साथ पुलिस व्यवहार करती है, जरा भी इनके मन में मरीज को प्रति सहानुभूति नहीं रहती है परिजन से व्यवहार करते हैं जैसे इनको मानवता और करुणा दया से कोई मतलब नहीं है।
इस अस्पताल में इमरजेंसी वार्ड में मरीज को भर्ती कराने के लिए केंद्रीय मंत्री से लेकर बिहार सरकार के मंत्री और भी उच्च पदों पर आसीन व्यक्तियों से पैरवी कर आना पड़ता है तब जाकर कहीं इस अस्पताल में मरीज को जगह मिलती है।
इमरजेंसी के गेट पर तैनात सुरक्षाकर्मी मरीज को अंदर ले जाने नहीं देते हैं, डॉक्टर को सूचना देने के बाद स्ट्रेचर पर एंबुलेंस में लेटे सीरियसमरीज को डॉक्टर तत्परता से चेकअप नहीं करते हैं जब तक उनके पास बीआईपी फोन या विशेष परिस्थिति नहीं हो, इस कारण गरीब और कमजोर मरीज दम तोड़ देते हैं जैसा कि पिछले सप्ताह इस अस्पताल में हुआ कोई डॉक्टर चेक करके यह बताने की स्थिति में नहीं थे कि व्यक्ति मर गया या जिंदा है आखिर उसके परिजन को मृत्यु का प्रमाण पत्र कहां से मिलेगा जब इस अस्पताल से नहीं होगा तो परिजन कहां जाएंगे, उल्टा मृतक के परिजन को सुरक्षाकर्मी दौरा दौरा के पीट रहे हैं थाने की पुलिस बुलाकर उनके ऊपर f.i.r. करा दिया जाता है यह कहां तक सत्य है इसको देखने सुनने वाले अधिकारी कहां है। बिहार में न्याय के साथ विकास क्या यही सच है?
भारत के प्रधानमंत्री ने डिजिटल इंडिया की कल्पना की है, पेपर लेस कार्यालय बनाने की योजना चल रही है लेकिन आज भी इस अस्पताल में काउंटर पर नगद जमा करना पड़ता है, यह कहां तक तर्कसंगत है आज चारों तरफ डिजिटल इंडिया की बात करते हैं और अस्पताल में रुपया लेकर जाना पड़ता है आखिर इसके पीछे क्या कारण है इसकी भी जांच होनी चाहिए।
विशेष परिस्थिति में आए हुए मरीज एवं उसके परिजन को इलाज के लिए भटकना नहीं पड़े इसको देखभाल करने की जरूरत है।