August 15, 2021

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भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को एक मजबूत पनाहगाह दी थी नेपाल देश ने – मुफ्ती सलीम बरेलवी/रिपोर्ट नसीम रब्बानी

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भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को एक मजबूत पनाहगाह दी थी नेपाल देश ने – मुफ्ती सलीम बरेलवी/रिपोर्ट नसीम रब्बानी

भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों और मुस्लिम क्रान्तिकारियों के लिए एक सुरक्षित पनाहगाह थी नेपाल की भूमि – मुफ्ती सलीम नूरी

बरेली, उत्तर प्रदेश।

आला हजरत मुजद्दिद इमाम अहमद रजा खान फाजिले बरेलवी द्वारा स्थापित जामिया रजविया मंजर-ए-इस्लाम दरगाह आला हज़रत बरेली अहल-ए-सुन्नत व जमाअ़त की विश्व प्रसिद्ध एक केंद्रीय संस्था है। जिसकी सामाजिक सेवाओं की सीमा बहुत व्यापक है। इस संस्था ने अपनी निस्वार्थ सेवा से मजहब और मसलक के साथ देश और राष्ट्र का नाम भी दुनिया भर में प्रसिद्ध किया है। वर्तमान में यह महान संस्था और इसके विद्वान शिक्षक मुफ्ती मुहम्मद सलीम बरेलवी कई महीनों से लगातार युवा पीढ़ी को भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के विषय में सोशल मीडिया और यूट्यूब जैसे आधुनिक प्लेटफार्म के माध्यम से भरपूर अंदाज में अवगत करा रहे हैं।
इस संबंध में मीडिया प्रभारी नासिर कुरैशी ने बताया कि भारत का 75वां स्वतंत्रता दिवस मरकजे अहल-ए-सुन्नत के प्रमुख हजरत मौलाना सुब्हानी मियां व सज्जादानशीन हजरत मुफ्ती अहसन मियां और मंजर-ए इस्लाम के प्राचार्य मुफ्ती मो0 आकिल रजवी की देखरेख में मंजर-ए-इस्लाम और दरगाह के प्रांगण में बड़ी धूमधाम से मनाया गया। सुबह आठ बजे राष्ट्रीय ध्वज को फहराया गया। कोविड 19 के प्रतिबंधों को ध्यान में रखते हुए शिक्षकों और छात्रों ने उत्साहपूर्वक इस कार्यक्रम में भाग लिया। मदरसा शिक्षक डॉ एजाज अंजुम, मुफ्ती मुहम्मद सलीम बरेलवी, मास्टर कमाल अहमद ने” भारत की स्वतन्त्रता में मुस्लिम योद्धाओं, क्रांतिकारियो , आलिमों,मदरसों, खानकाहों, और नेपाल देश की अहम भुमिका” भरपूर प्रकाश डाला। मुफ्ती अफरोज आलम, मुफ्ती सय्यद कफील हाशमी, सैयद शाकिर अली, मुफ्ती मोइन, मुफ्ती जमील, मौलाना अय्यूब खान नूरी, मौलाना अख्तर और सैयद जुल्फी की देखरेख में मदरसा छात्रों ने भी एक भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया। जिसमे समस्त छात्रों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया।
मुफ्ती सलीम साहिब बरेलवी ने अपनी विशिष्ट श्रृंखला के अनुसार “भारत की स्वतंत्रता में नेपाल का योगदान” जैसे अछूते और अनोखे विषय पर अपने ऑनलाइन संबोधन में कहा कि शायद बहुत कम लोग यह जानते हैं कि भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में नेपाल ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। स्वतन्त्रता आंदोलन में नेपाल के योगदान के बारे में विस्तार से बताते हुए उन्होंने कहा कि पडोसी देश नेपाल, मध्य एशिया का एक ऐसा भाग्यशाली देश है जो ब्रिटिश साम्राज्य की गुलामी से बचा रहा। उसका हमारे देश के साथ सदियों पुराना रिश्ता रहा है। इस रिश्ते की प्रकृति धार्मिक और भाषाई दोनों है। सांस्कृतिक के साथ-साथ दोनों पड़ोसी देश सामाजिक और राजनीतिक रिश्तों की डोर में भी प्राचीन काल ही से बंधे हुए थे। इस भारत-नेपाल रिश्ते की व्याख्या ” रोटी और बेटी ” के रिश्ते के रूप में भी की जा सकती है क्योंकि दोनों देशों के नागरिक एक दूसरे के यहाॅ शादी-ब्याह भी करते हैं और दोनों मुल्क व्यापार और रोजगार द्वारा भी एक दूसरे से संबन्धित हैं। इसी रिश्ते के कारण जब भारतीय क्रांतीकारियो को स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अंग्रेजों द्वारा कैद किए जाने का गंभीर खतरा हो जाता था तो वे ब्रिटिश हुकुमत के उत्पीड़न से बचने के लिए नेपाल में शरण ले लेते थे। इसका एक स्पष्ट उदाहरण बेगम हजरत महल का नेपाल में छिपना है। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों की जीत और देहली पर कब्जे के बाद ब्रिटिश सेना ने अवध पर हमला किया और अंग्रेज नवाब वाजिद अली शाह को पकड़कर कलकत्ता ले गये।एसे समय मे बेगम हजरत महल ने ब्रिटिश फौज से लखनऊ को सुरक्षित रखने के लिये बहुत संघर्ष किया लेकिन अंत में वे विफल रहीं। उस समय, नेपाल एकमात्र ऐसा देश था जिसने बेगम हजरत महल और अंग्रेजों से संघर्ष करने वाले स्वतंत्रता सेनानियों को एक मजबूत शरण प्रदान की थी। 1879 में काठमांडू में बेगम हजरत महल की मृत्यु हो गई और कश्मीरी मस्जिद से सटे कब्रिस्तान में खामोशी के साथ उन्हे दफना दिया गया।
निस्संदेह यह नेपाल और नेपालियों का भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक अविस्मरणीय योगदान है जिसे कोई भी भारतीय कभी नहीं भूल सकता । भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के अनछुए पहलुओं को उजागर करने में रुचि रखने वाले शोधकर्ताओं और शोधार्थियों के लिए यह एक महत्वपूर्ण विषय है। इस पर शोध होना चाहिए।

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