March 17, 2025

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प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान: फरवरी में प्रसव पूर्व जांच में देश में चौथे स्थान पर रहा बिहार

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प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान: फरवरी में प्रसव पूर्व जांच में देश में चौथे स्थान पर रहा बिहार

-दूसरी व तीसरी तिमाही वाली 24 हजार 173 गर्भवतियों की हुई जांच
-हर महीने 9 व 21 तारीख को मनाया जाता है पीएमएसएमए दिवस

पटना। 17 मार्च
मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए चलाए जा रहे प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान (पीएमएसएमए) के संचालन में बिहार ने सामूहिक प्रयासों व संकल्पों से नई नजीर पेश की है। इसकी निरंतरता बनाये रखते हुए राज्य ने फरवरी माह में भी देश में चौथा स्थान प्राप्त किया है। फरवरी माह में राज्य ने दूसरे व तीसरे तिमाही वाली कुल 24 हजार 173 गर्भवतियों की जांच इस अभियान के तहत की। हर माह के 9 व 21 तारीख को आयोजित होने वाले इस अभियान में बिहार अगस्त व सितंबर 2017 में पहले व जून 2022 एवं अगस्त 2024 में देश के शीर्ष दो राज्यों में अपनी जगह बना चुका है। मुजफ्फरपुर जिले के मुरौल प्रखंड के गोपालपुर की रुबी कहती हैं कि जब वह गर्भवती हुई थी, तो उसके बाद उन्हें शारीरिक दिक्कतें झेलनी पड़ रही थी। जब आंगनबाड़ी केंद्र संख्या 75 पर आयोजित आरोग्य दिवस में उनकी जांच हुई तो पता चला कि उनका रक्तचाप कम है। इसके बाद कुछ दवाएं दी गयी। अब वह उन्हीं दवाओं को खाकर स्वस्थ महसूस कर रही हैं।

मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य को बेहतर करने में सहायक:
राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी (मातृ-स्वास्थ्य) डॉ नरेन्द्र कुमार सिन्हा ने बताया कि पीएमएसएमए की शुरुआत 2016 में प्रधानमंत्री के द्वारा किया गया था। इसमें प्रत्येक माह के 9 एवं 21 तारीख को स्वास्थ्य केंद्रों पर विशेषज्ञ चिकित्सकों के द्वारा गर्भवती महिलाओं की हीमोग्लोबिन, एचआईवी, शुगर, अल्ट्रासाउंड जैसी जांच की जाती है। जरूरत पड़ने पर गर्भवती महिलाओं को उच्चतर स्वास्थ्य केंद्रों पर भी रेफर किया जाता है।

एएनसी जांच के प्रति लोगों की जागरूकता भी बढ़ी:
पीएमएसएमए के तहत होने वाली प्रसव पूर्व जांच के बारे में फॉग्सी की पूर्व अध्यक्ष डॉ मीना सावंत कहती हैं कि राज्य में प्रसव पूर्व जांच के प्रति लोगों में सतर्कता पहले की अपेक्षा काफी बढ़ी है। प्रसव पूर्व जांच से गर्भवती और उसके गर्भ में पल रहे बच्चे के बारे में पूरी जानकारी मिलती है। पूरे गर्भकाल में कम से कम चार बार प्रसव पूर्व जांच कराना जरूरी है। इससे गर्भवतियों में उच्च जोखिम वाले प्रसव का भी पता चलता है। संस्थागत प्रसव को बढ़ावा मिलने के साथ प्रसव प्रबंधन में भी आसानी होती है।

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