लंबित अनुदान नही केवल वेतनमान ही स्वीकार, जनप्रतिनिधियों का करेंगें घेराव – आशुतोष कुमार सिंह
रिपोर्ट :नसीम रब्बानी, बिहार
पटना (बिहार) बिहार वित्त अनुदानित माध्यमिक शिक्षा कर्मी मंच निरंतर समस्याओं के समाधान के लिए प्रयास कर रहा है। इसको लेकर सैकड़ों पत्र प्रेषित कर और राज नेताओं का घेराव और ज्ञापन देकर समस्या के समाधान के लिए आग्रह करता रहा है। लेकिन सरकार केवल जांच और एक दो वर्षों के लंबित अनुदान देकर बहला फुसलाकर कर शांत करना चाहती है। वर्तमान में भी अनुदानित माध्यमिक विद्यालयों की समस्याओं के निदान के लिए क्षेत्र के दौड़े पर गयेमंत्री जी तथा मुख्यमंत्री एवं शिक्षा मंत्री को पत्र लिखा गया और ज्ञापन दिया गया। उक्त बातें मंच के प्रदेश महासचिव आशुतोष कुमार ने कही। आगे उन्होनें कहा कि हमलोगों को लंबित अनुदान नही, केवल वेतनमान है स्वीकार्य। आखिर कब तक ? अनुदानित शिक्षा कर्मी लंबित अनुदान के भरोसे जीवन यापन करते रहेंगे। विधान परिषद में एम एल सी और सभापति अवधेश नारायण सिंह जी के प्रयास से कमिटी बनी लेकिन सरकार उसे भी ठंढ़े वस्ते में डाल दिया। नियमावली में संशोधन की अनुशंसा के लिए कमिटी बनी लेकिन अभी तक उसका कोई अता पता नही है। यहां पैसे के अभाव शिक्षाकर्मियों की जान जा रही है। कितनी गर्मी बिना वेतन के भगवान को प्यारे हो गए और कितने हर वर्ष अवकाश ग्रहण कर रहे हैं, लेकिन 44 वर्ष बाद भी वित्त रहित व अनुदानित शिक्षाकर्मी अपनी दिनहीनता पर आंसू बहा रहा है। वास्तविकता यह है कि बिहार के किसी भी राजनीतिक दल को वित्त रहित की सुधि लेने के लिए फुर्सत नहीं है। पर्याप्त भूमि,भवन, उपस्कर, और पर्याप्त संसाधन उपलब्ध करने के बावजूद सरकार उपेक्षित कर इन विद्यालयों को बंद करना चाह रही है। सरकार के पास अनुदानित विद्यालयों से कम संसाधन के कई उत्क्रमित माध्यमिक विद्यालय हैं, फिर भी जांच के नाम पर इन विद्यालयों की संबद्धता रद्द कर दी गई और उसे कम संसाधन वाले विद्यालयों से टैग कर दिया गया है । इस पर एक बार सरकार को विनम्रतापूर्वक सोचने की जरूरत है। आज तक आम जनों और कमेटी के द्वारा खुली विद्यालयों को ही सरकार अधिग्रहण करती रही है, फिर कौन सा नियम इसे अधिग्रहण से रोक रहा है? आज अल्प जमीन और उपस्कर वाले विद्यालय पर सरकार मकान बना रही है, लेकिन पर्याप्त भूमि और साधन वाले विद्यालयों को उपेक्षित कर रही है। यह बहुत ही दुखद और चिंतनीय बात है। इस पर अविलंब सोचने की जरूरत है। हम यह सरकार से मांग करते हैं कि जब तक बिहार में वित्त रहित और अनुदानित शिक्षाकर्मी बदतर जिंदगी जीते रहेंगे, वित्त रहित का कलंक जब तक बिहार पर लगा रहेगा तब तक बिहार का विकास नहीं होगा। मैं सभी राजनीतिक दलों और सरकार से गुजारिश है कि वे बिहार से इस कलंक को मिटाकर एक सम्मानजनक हल का प्रयास करें। वित्त रहित कर्मी चुनाव तक सभी जनप्रतिनिधियों का घेराव अपने अपने विधान सभा और विधान परिषद के यहां करे।सरकार अधुदान के बदले वेतनमान की धोषणा करे और विपक्ष मोनोफेस्टो में वेतनमान को शामिल करें, अन्यथा यह संधर्ष जारी रहेगा।