साहित्य में राजेंद्र बाबु का योगदान विषय पर संगोष्ठी का आयोजन
1 min readसाहित्य में राजेंद्र बाबु का योगदान विषय पर संगोष्ठी का आयोजन
*राजेन्द्र बाबु कई साहित्यिकयों में अद्भूत लेखन एवं व्याख्या क्षमता के मालिक थे:शशि भूषण*
हाजीपुर के डॉक्टर्स कॉलोनी स्थित साहित्य वाटिका में हिन्दी साहित्य सम्मेलन वैशाली अध्यक्ष डॉ शशि भूषण कुमार की अध्यक्षता में देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद की 140वीं जयंती मनाई गई। इस अवसर “साहित्य में राजेंद्र बाबु का योगदान” विषय पर एक गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का संचालन सम्मेलन के उपाध्यक्ष मेदिनी कुमार मेनन ने किया। आई एस एम धनबाद की छात्रा सिद्धी सेन ने वाणी वंदना प्रस्तुत की। सर्व प्रथम डॉ राजेंद्र बाबु के चित्र पर माल्यार्पण एवं पुष्पांजलि किया गया। आई आई टी मद्रास के छात्र कृष्ण सत्यम ने सबों को राजेंद्र बाबु के व्यक्तित्व को आत्मसात करने की बात कही। संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष ने कहा कि राजेंद्र बाबु 1926 ई० में वे बिहार प्रदेशीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन के और 1927 ई० में उत्तर प्रदेशीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन के सभापति थे। हिन्दी में उनकी आत्मकथा बड़ी प्रसिद्ध पुस्तक है। अंग्रेजी में भी उन्होंने कुछ पुस्तकें लिखीं। उन्होंने हिन्दी के ‘देश’ और अंग्रेजी के ‘पटना लॉ वीकली’ समाचार पत्र का सम्पादन भी किया था। इतना ही नहीं उन्होंने कई चर्चित पुस्तकों को भी लिखा। जैसे-इंडिया डिवाइडेड,
राजेंद्र प्रसाद – आत्मकथा, एट द फ़ीट ऑफ़ महात्मा गांधी, बापू के कदमों में बाबू, सत्याग्रह ऐटचंपारण,
गान्धीजी की देन,भारतीय संस्कृति,
खादी का अर्थशास्त्र।
उन्होंने हिन्दी साप्ताहिक ‘देश’ और अंग्रेज़ी पाक्षिक ‘सर्चलाइट’ का सम्पादन भी किया था। वे अंग्रेज़ी, हिन्दी, उर्दू, फ़ारसी, और बंगाली भाषा और साहित्य से पूरी तरह परिचित थे। वे इन भाषाओं में सरलता से प्रभावकारी व्याख्यान भी देते थे।
राजेंद्र प्रसाद भारतीय स्वतंत्रता कार्यकर्ता, वकील और विद्वान के साथ-साथ परिपक्व और अद्भूत लेखन क्षमता के मालिक थे।
थे। वे 1950 से 1962 तक भारत के पहले राष्ट्रपति भी रहे। कार्यक्रम में भारती कुमारी,अनुपमा सिंह,पूजा कुमारी,वेद वत्स,सोनाक्षी श्रीवास्तव,आदर्श कुमार,प्रिन्स कुमार,डॉ एस के मंडल एवं प्रो0 रजत कुमार प्रमुख रूप से उपस्थित थे।