बाल श्रमिकों की संख्या में कमी लाने किया गया वर्चुअल संवाद
बाल श्रमिकों की संख्या में कमी लाने किया गया वर्चुअल संवाद
•अंतरराष्ट्रीय बाल श्रम निषेध दिवस पर कार्यक्रम का हुआ आयोजन
•बच्चों को बाल श्रम से दूर रखने की रणनीति पर की गयी चर्चा
सीतामढ़ी, 12 जून: जिला में बाल श्रमिकों की संख्या को कम करने की दिशा में विभिन्न संस्थाओं द्वारा उल्लेखनीय काम किया जा रहा है। बाल श्रम के चंगुल से बचाने के लिए नये प्रयास के रूप में और उन्हें सुरक्षित रखने के कार्यों को अधिक गति प्रदान के मद्देनजर शनिवार को एक वर्चुअल संवाद किया गया। इस संवाद में बाल श्रम उन्मूलन की दिशा में काम कर रही संस्था अदिथी सहित बीएमवीएस, सेंटर डायरेक्ट ह्यूमन लिबर्टी नेटवर्क तथा चाइल्डलाइन के अधिकारियों ने हिस्सा लिया। वर्चुअल संवाद के दौरान बच्चों को बाल श्रम से दूर रखने की रणनीति आदि पर चर्चा की गयी जिनमें कम आय वाले परिवार को श्रमिक कार्ड के लिए सूचीबद्ध करने, मनरेगा कार्ड तथा आयुष्मान भारत स्वास्थ्य कार्ड की सुविधा दिलाने तथा जनवितरण प्रणाली के माध्यम से आवश्यक राशन पहुंचाने तथा ऐसी कई योजनाओं के लाभ तक उनकी पहुंच को बढ़ाने आदि पर चर्चा की गयी।
संस्थाओं के हितधारकों द्वारा संयुक्त प्रयास की जरूरत:
बाल मजदूरी उन्मूलन तथा बच्चों की तस्करी को रोकने के लिए काम करने वाली संस्था अदिथी के निदेशक परिणीता ने बताया सीतामढ़ी बिहार की आकांक्षी जिलों की सूची में शामिल है. जिले बाल श्रम एक बड़ी चुनौती है। इससे बच्चों को निज़ात दिलाते हुए उन्हें शिक्षित करने की भी अधिक जरूरत है। उन्होंने कहा विश्व बाल श्रम निषेध दिवस के मौके पर सभी को मिलकर प्रयास करने की जरूरत है, जिसमें इससे जुड़ी संस्थाओं के साथ हितधारकों को भी ज़िम्मेदारी निर्वहन करने की आवश्यकता होगी। उन्होंने कहा सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल में बाल श्रम के लिए लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं, जिसे हासिल करने के लिए अधिक प्रयास की जरूरत है। उन्होंने कहा कि लॉकडाउन की अवधि के दौरान जिस तरह बच्चों की शिक्षा के लिए उत्तरप्रदेश ने वैकल्पिक उपाय किये हैं, वैसे ही बिहार में भी करने की जरूरत है. जितना अधिक बाल श्रम पर सामूहिक चर्चा होगी, उतना ही लोगों में इसके प्रति जागरूकता बढ़ेगी।
महत्वाकांक्षी जिलों में शामिल है सीतामढ़ी जिला
बिहार का सीतामढ़ी जिला महत्वाकांक्षी जिलों में से एक है। राज्य के नेपाल सीमा पर बसे इस गांव के लोग रोजगार के लिए पलायन करने को मजबूर होते हैं. माता—पिता के साथ बच्चे भी पलायन कर जाते हैं। वही बच्चों की तस्करी भी होती है। तस्करी में विशेष रूप से कर्ज में डूबे परिवार के बच्चों की संख्या अधिक होती है। कोविड 19 के कारण बच्चों की तस्करी व बाल श्रमिकों की संख्या में इजाफा होने को देखते हुए अभियान को चलाया गया है।
कोविड 19 के दौरान बच्चों की सुरक्षा है जरूरी:
कोविड 19 के दूसरे लहर के कारण बाल श्रम के लिए होने वाले तस्करी के प्रति भी चिंता जताते हुए अभियान को केंद्रित किया गया है। विशेषकर कम आय वाले परिवार, प्रवासी मजदूरों की वापसी तथा बेरोजगारी, कर्ज का ब्याज दर अधिक होना, स्कूलों का बंद होना, शिक्षा की वैक्लिपक व्यवस्था नहीं होना बच्चों के अन्य क्रियाकलाप में व्यस्त नहीं रहना तथा योजनाओं की पहुंच नहीं होना आदि कारणों से बच्चों की तस्करी का जोखिम अधिक है।
यूएन ने किया 2021 को बाल श्रम उन्मूलन वर्ष घोषित:
वर्ष 2011 में हुए जनगणना रिपोर्ट के अनुसार बिहार में 5 से 14 वर्ष आयुवर्ग के 10 लाख से अधिक बच्चे बाल श्रमिक के रूप में काम करते हैं. इस वर्ष 2021 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा बालश्रम उन्मूलन वर्ष घोषित किया गया है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन तथा युनिसेफ के अनुसार बीते 20 सालों में बाल श्रम में अप्रत्याशित इजाफा हुआ है. वर्ष 2000 से 2016 के मध्य 9 करोड़ 40 लाख बाल श्रमिकों की संख्या में कमी आयी लेकिन बीते चार सालों में यह संख्या फिर से बढ़ी है। कोविड 19 के कारण बाल श्रमिकों की संख्या 16 करोड़ हो गयी है। वैश्विक स्तर पर बाल श्रमिकों की बढ़ी इस संख्या में 9 से 11 वर्ष आयुवर्ग के बच्चे शामिल हैं।