सीडीपीओ मंजू ने कुपोषण के ऊबड़-खाबड़ रास्तों से तैयार की सुपोषण की समतल सतह
1 min readसीडीपीओ मंजू ने कुपोषण के ऊबड़-खाबड़ रास्तों से तैयार की सुपोषण की समतल सतह
– मुसहरी के आंगबाड़ी केंद्रों पर गतिविधियों को दी नई धार, घर-घर पहुंचाई पोषण का संदेश
– जनप्रतिनिधियों को आंगबाड़ी केंद्र की गतिविधियों से जोड़कर लाया बड़ा बदलाव
मुजफ्फरपुर। 11 मार्च
काम करने का जज्बा हो तो कुपोषण के ऊबड़- खाबड़ रास्तों से भी सुपोषण की समतल राह गढी जा सकती है। बदलाव के इस बयार को देखना-महसूस करना हो तो आपको मुजफ्फरपुर से 28 किलोमीटर दूर मुसहारी प्रखंड आना होगा। यहां के आंगबाड़ी केंद्रों की दीवार पर बनी बच्चों की तस्वीर की मुस्कान अब वास्तविक जीवन में लोगों के घरों में फैल गई है। गांव में कदम रखते ही सोलर प्लेट से जगमग करते आंगबाड़ी केंद्र, किचन गार्डेन और खेल-खेल में सीखते-समझते बच्चों को देखकर आप अभिभूत रह जाएंगे। प्रखंड में इस बदलाव का सूत्रधार है सीडीपीओ मंजू कुमारी। उन्होंने आज कई ऐसे आंगबाड़ी केंद्रों की कायापलट कर दी है, जो पिछड़ी बस्ती में हैं और पहुंच पथ भी काफी दुर्गम है। उन्होंने जमीनी स्तर पर काम कर इस बदलाव से साबित कर दिखाया कि जज्बा हो तो बिना पंख के भी उड़ान मुमकिन है। प्रखंड के आंगबाड़ी केंद्रों को कैसे मॉडल के रूप में स्थापित किया, सुनिए सीडीपीओ मंजू कुमारी की जुबानी।
सबसे पहले कार्यसंस्कृति को बदला :
सीडीपीओ मंजू कुमारी बताती हैं-‘‘ जब मैंने प्रखंड में सीडीपीओ का कार्यभार संभाला तो सबसे पहले आंगबाड़ी केंद्रों की कार्यसंस्कृति को बदलने पर काम किया। रणनीति के तहत काम करने की शुरुआत की। छह महिला पर्यवेक्षिकाओं को प्रशिक्षित किया, उनका कॉन्सेप्ट क्लियर कराया कि सिर्फ पोषाहार वितरण और टीकाकरण तक ही आंगबाड़ी केंद्रों की भूमिका नहीं है, बल्कि आंगबाड़ी केंद्रों को कैसे बच्चों के लिए फ्रेंडली बनाया जाए, इसपर भी काम करने की जरूरत है। ईसीईसीई यानी प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा एवं देखरेख पर जोर दिया। नई पहल की दैनिक गतिविधियों को रंगीन चार्ट पेपर के जरिये हर केंद्र पर प्रदर्शित करवाया। उसी रूटीन के हिसाब से नाश्ते-खाने का समय और कब किस तरह का पोषक आहार खाने में देना है, खेल और पढाई की गतिविधियों आदि को इसमें दर्शाया। आंगबाड़ी केंद्रों की गतिविधियों को घर-घर तक पहुंचाने के लिए जनभागीदारी को माध्यम बनाया। इसके सार्थक परिणाम मिले। समुदाय के सहयोग से 10 मॉडल आंगबाड़ी केंद्र स्थापित किए गए हैं।’’
देखा-देखी बनता चला गया कारवां :
मंजू का कहना है कि गांव-कस्बों में किसी भी उपलब्धि में जनप्रतिनिधियों की बड़ी भूमिका होती है। बानगी के तौर पर बताती हैं कि छपरा के केंद्र संख्यर 179 की सेविका और सहायिका में काम करने का जबर्दस्त जज्बा था, लेकिन केंद्र पर आधारभूत संरचना का अभाव आड़े आ रहा था। मंजू देवी ने इस केंद्र को विकसित करने के लिए वहां के वार्ड सदस्य से मुलाकात की। केंद्र के बगल में खाली जमीन को किचन गार्डेन के लिए मांगा। वार्ड सदस्य को समझाया कि इससे आप ही के वार्ड के बच्चे लाभान्वित होंगे। वार्ड सदस्य मान गए और उन्होंने न केवल जमीन दी, बल्कि केंद्र को विकसित करने में सहयोग भी किया। आज इस आंगबाड़ी केंद्र का नजारा ही कुछ और है। हर चीज सुसज्जित और करीने से है। मंजू बताती हैं कि पोषण माह के दौरान छपरा पंचायत के मुखिया ने अपनी बड़ी भागीदारी निभाई। हर गतिविधि में वे शामिल रहे। उनकी देखा-देखी जनभागीदारी का कारवां बढ़ता चला गया। मणिका विशनपुर चांद, रहुआ, राजवाड़ा भगवान, अब्दुलनगर माधोपुर, मणिका हरिकेश और डुमरी जैसी इंटीरियर पंचायतों के मुखिया भी काफी सक्रिय हो गए। आंगबाड़ी केंद्रों की गतिविधियों में शामिल होने लगे। हर बैठक में उनकी भागीदारी दिखने लगी। मंजू बताती हैं कि उन्होंने जनप्रतिनिधियों से कहा कि आप जब क्षेत्र में जाएं तो पोषण की बात भी करें। इस तरह से आंगबाड़ी केंद्र और जनप्रतिनिधियों के साझा प्रयास से प्रखंड में बच्चों में पोषण दर काफी बेहतर हुई। अब्दुलनगर माधोपुर के मुखिया तो ताजिया के जुलूस में भी पोषण से जुड़ा बैनर-पोस्टर लगवा कर लोगों को जागरुक किए थे।
व्यवहार परिवर्तन से कुपोषण पर वार :
मंजू कुमारी आईसीडीएस के काम को ग्राउंड लेवल पर ले जा चुकी हैं। उनका मानना है कि सिर्फ पोषाहार से ही कुपोषण नहीं जाएगा। इसके लिए वे महिला पर्यवेक्षिकाओं की टीम के साथ क्षेत्र में जाती हैं और समुदाय में व्यवहार परिवर्तन पर काम करती हैं। स्वच्छता के सहारे भी समुदाय में पोषण का संदेश ले जाने में मंजू कामयाब हुई हैं। वे बताती हैं कि अब लोग घर में शौचालय की अनिवार्यता को समझने लगे हैं। साफ-सफाई की आदत अपनाने लगे हैं। व्यवहार परिवर्तन और सतत निगरानी के बल पर ही वे चमकी बुखार को लेकर समुदाय को जागरूक करने में कामयाब हुईं। वे बताती हैं कि पिछले साल की तुलना में इस साल स्थिति अच्छी रही। इसका मुख्य कारण बच्चों के पोषण को लेकर समुदाय की जागरुकता रही।
केंद्रों पर किचन गार्डेन विकसित कर रहा प्लान इंडिया :
मंजू बताती हैं कि उनके प्रखंड में केंद्र संख्या-125, 126, 162, 213, 191 पर प्लान इंडिया किचन गार्डेन को विकसित कर रहा है। यह काफी अच्छी बात है। वे बताती हैं कि विभाग ने सभी सुविधाएं और काम करने के लिए मार्गदर्शन दे रखा है। बस जरूरत इस बात की है कि इसका जमीनी स्तर पर सही उपयोग हो। साथ ही जनभागीदारी सुनिश्चित हो। मंजू ने अपने कुशल नेतृत्व क्षमता से न केवल आंगबाड़ी केंद्रों की रूपरेखा बदली, बल्कि जनप्रतिनिधियों के माध्यम से पूरे समुदाय में आंगबाड़ी केंद्र के पोषण के संदेश को प्रभावी ढंग से पहुंचाने में कामयाब हुई। लॉकडाउन के समय में जरूरतमंदों तक राशन पहुंचाने में मुखिया लोगों ने अपनी गाड़ी मुहुया करवाई। मंजू का कहना है कि समेकित प्रयास से तिनका-तिनका कर उन्होंने जो आशियाना खड़ा कर दिया है, वह आंगबाड़ी केंद्रों की गतिविधियों को आज एक नई धारा में ले जा रहा है।