शब-ए-बारात के मौके पर मिर्जानगर डोगरा मस्जिद को बड़े ही खूबसूरत ढंग से सजाया गया मोहम्मद नदीम रब्बानी हाजीपुर(वैशाली) शब-ए-बारात 18 मार्च की रात को बड़े ही सादगी और पाकीजगी के साथ मनाई गयी। जिले के सभी मस्जिदों और कब्रिस्तान को साफ सफाई कर रंग बिरंग बत्तियों से सजाया गया था। वही महुआ प्रखंड अंतर्गत मिर्जानगर डोगरा मस्जिद को बड़े ही खूबसूरत ढंग से सजाया गया था। मस्जिद के इमाम मोहम्मद मुमताज आलम ने एक मिलाद शरीफ का आयोजन कर अपने सम्बोधन में सभी उपस्थित लीगों को शब ए बारात की रात की फजीलत बताई,और कहा कि अल्लाह सबको माफी देते हैं लेकिन वो लोग जो मुसलमान होकर दूसरे मुसलमान से द्वैष रखते हैं दूसरों के खिलाफ साजिश करते हैं और दूसरे की जिंदगी का हक छीनते हैं उनको अल्लाह कभी माफ नहीं करता है. वहीं मस्जिद के मोअज्जिन मोहम्मद जलालुलुद्दीन ने नातिया कलाम पढ़ कर सब की झूमा दिया। बाता दें की शब-ए-बारात मुसलमान समुदाय के लोगों के लिए इबादत और फजीलत की रात होती है. मुस्लिम समुदाय में ये त्यौहार बेहद खास माना जाता है. ऐसा कहा जाता है कि इस दिन अल्लाह की रहमतें बरसती हैं. शब-ए-रात की रात को पाक रात माना जाता है और इस रात मुसलमान समुदाय के लोग अल्लाह की इबादत करते हैं. साथ ही उनसे हुए अपने गुनाहों की माफी मांगते हैं। बता दें कि मुसलिम सुमदाय के लोग इस पूरी रात अल्लाह को याद करते हैं और उनसे अपने गुनाहों की माफी मांगते है. ऐसा माना जाता है कि इस रात दुआ और माफी दोनो ही अल्लाह मंजूर करते हैं और गुनाह से पाक कर देते हैं. इस बार शब-ए-बारात शुक्रवार यानि की जुमा की रात को पड़ी थी।इस वजह से इसका महत्व और ज्यादा बढ़ गया है। शब-ए-बारात की रात को मुसलिम समुदाय के लोग अपनों की कब्र पर जाते है और उनके हक में दुआएं मांगते है. वहीं मुसलमान औरतें इस रात घर पर रह कर ही नमाज पढ़ती हैं, कुरान की तिलावत करके अल्लाह से दुआएं मांगती हैं और अपने गुनाहों से तौबा करती हैं.इस्लाम धर्म के अनुसार इस रात अल्लाह अपनी अदालत में पाप और पुण्य का निर्णय लेते हैं और अपने बंदों के किए गए कामों का हिसाब-किताब करते हैं जो लोग पाप करके जहन्नुम में जी रहे होते हैं उनको भी इस दिन उनके गुनाहों की माफी देकर के जन्नत में भेज दिया जाता है. हालांकि रोजा रखने की फजीलत मुसलिम समुदाय के कुछ लोग शब-ए-बारात के अगले दिन रोजा भी रखते है. इसके पीछे ऐसी मान्यता है कि रोजा रखने से इंसान के पिछली शब-ए-बारात से इस शब-ए-बारात तक के सभी गुनाहों से माफी मिल जाती है। लेकिन अगर रोजा ना भी रखा जाए तो गुनाह नहीं मिलता है। लेकिन रखने पर तमाम गुनाहों से माफी मिल जाती है ।
मुस्लिम समुदाय में से कुछ लोग शब-ए-बारात के दिन रोजा भी रखते हैं। इसके पीछे वह मानते हैं कि रोजा रखने से पिछली शब-ए-बारात से लेकर इस शब-ए-बारात तक गुनाहों की माफी मिल जाती है। लेकिन उलेमाओं में इसे लेकर अलग-अलग राय है। कुछ उलेमा मानते हैं कि इस दिन रोजा रखने से बहुत ही सवाब यानी पुण्य मिलता है लेकिन कुछ मानते हैं कि इस दिन रोजा रखना जरूरी नहीं है। चूंकि शाबान के महीने के बाद रमजान का महीना शुरू हो जाता है और उसमें पूरे महीने रोजा रखना जरूरी होता है।मौके पर महुआ राजद प्रखंड अध्यक्ष मोहम्मद नसीम रब्बानी, मास्टर मोहम्मद इम्तियाज, डॉ शादाब आलम, मास्टर मोहम्मद शहादत हुसैन, हाजी मोहम्मद दीन अंसारी, हाजी मोहम्मद इजहार अंसारी, मोहम्मद शमीम रब्बानी, मोहम्मद जहूर अंसारी, मोहम्मद ज़ाकिर हुसैन, ठीकेदार मोहम्मद सदरे आलम, मोहम्मद शाजिद उर्फ मुन्ना अंसारी के साथ बस्ती के सैंकड़ों लोग उपस्थित थे।