नवजात की बचायी जान, सिर पर से निकाला आधा किलो का ट्यूमर
नवजात की बचायी जान, सिर पर से निकाला आधा किलो का ट्यूमर
– माईल गांव के नवजात को जन्म से ही था सिर पर ट्यूमर
– आरबीएसके के द्वारा एनएमसीएच में हुआ नि:शुल्क ऑपरेशन
– अब सामान्य जीवन जी रही बच्ची। रिपोर्ट नसीम रब्बानी
वैशाली,7 जून ।
नए शिशु के आने की खुशी में डोमन राय धान की रोपनी छोड़ कर आया था। नए शिशु का आगमन तो हुआ पर उसके सिर के पीछे आधा किलो का ट्यूमर देख डोमन राय और उसके परिजन हैरान थे। जन्म के बाद ट्यूमर को भूल उसके मां और पिता अपनी बच्ची को सारा प्यार दे रहे थे। पर जब भी डोमन अपनी बच्ची का ट्यूमर देखता तो उसे इलाज की चिंता सताती, पर पैसों की कमी के कारण वह कुछ नहीं कर पा रहा था। केयर सीएचसी सरोज सिंह की नजर माईल गांव में गृह भ्रमण के दौरान बच्ची पर पड़ी और वह उसका उपचार कराने में लगातार प्रयास करते रहे । वह दिन भी आया जब बच्ची का ऑपरेशन हुआ और वह आम बच्चियों की तरह भी दिखने और मुस्कुराने लगीं।
आरबीएसके से हुआ नि:शुल्क उपचार सरोज सिंह कहते हैं एक बार माईल गांव में नए बच्चे के जन्म के बाद उसके घर जा रहा था। तभी अचानक एक मां अपने बच्ची को गोद ली हुई दिखी जिसके सिर पर आधा किलो का ट्यूमर था। मैं उस समय भावना से भर गया। जाकर सारी जानकारी ली तो पता चला कि पैसे के अभाव में उनलोगों ने उसे कहीं नहीं दिखाया था। तब मैंने काउंसलिंग के लिए डोमन राय को जिला अस्पताल भिजवाया। जहां उन्हें यकीन हुआ कि उनकी बच्ची का इलाज संभव है। इस बीच मेरी सीनियर केयर की डीपीओ एनी ने आरबीएसके के डॉक्टरों के साथ मिलकर सारी कागजाती काम कराया। दूसरे दिन ही जिला अस्पताल से एक एम्बुलेंस से उस बच्ची को एनएमसीएच ले जाया गया। जहां चार घंटे के ऑपरेशन के बाद बच्ची का ट्यूमर अलग किया गया। अब वह बच्ची बिल्कुल ही स्वस्थ्य है। बच्ची के पिता डोमन कहते हैं मैं अंदर ही अंदर बहुत चिंता में रहता। खासकर ट्यूमर के साथ उसके भविष्य को लेकर, पर सरोज जी एक दिन घर आए और आरबीएसके के डॉ नीतिन जी के पास भेजा। वहां उन्होंने मुझे आश्वस्त किया कि इस ऑपरेशन का सारा खर्च सरकार उठाएगी। आज मेरी सारी चिंता की लकीरे मुस्कान में बदल चुकी है। वहीं पूर्व आरबीएसके के जिला प्रतिनिधि डॉ नितीन कहते हैं जन्म के समय अगर बच्चे में किसी भी तरह की विकृति आती है या बच्चों के स्वास्थ्य में किसी भी तरह की कोई दिक्कत होती है तो उसे आरबीएसके के तहत नि:शुल्क उपचार कराया जाता है।
निशान भी नहीं बचा
सीएचसी सरोज कहते हैं लगभग छह या सात महीने बाद मुझे फिर से माईल गांव जाने का मौका मिला। मेरे साथ के व्यक्ति ने इंगित करते हुए कहा कि यह वही बच्ची है जिसका ऑपरेशन हुआ था। वह आराम से दलान के बिछावन पर खेल रही थी। मैंने पास जाकर गोद लिया और पीछे सिर की तरफ देखा। कहीं से भी ऐसा नहीं लगा कि उस बच्ची को कभी इस तरह की दिक्कत थी। आँखों में काजल लगाए वह लेटे हुए मुझे देख मुस्कुरा रही थी।